My name is Jayesh Modi and I will provide here knowledge of std 9 and std 10 teachings for Gujarat' student, motivational quotes, pranic healing, Hindi, Gujarati, osho, Jiddu Krishnamurthy, buddha teaching, forgiveness prayer, meditation on twin hearts,gseb.org,teacher,results, students homework status,lessions

Jayesh Modi

live a life with purpose and joyfully

2017-18 batch

Class 9 f

Jayesh Modi

Std 9b in 2021-22

Jayesh Modi

During teaching

Saturday, May 27, 2017

Prosperity affirmation

AFFIRMATIONS FOR MONEY 

I am a magnet for money. 

Prosperity is drawn to me.

Money comes to me in expected and unexpected ways.

I move from poverty thinking to abundance thinking.

I am worthy of making more money.

I am open and receptive to all the wealth life offers me.

I embrace new avenues of income.

I welcome an unlimited source of income and wealth in my life.

I release all negative energy over money.

Money comes to me easily and effortlessly.

I use money to better my life and the lives of others.

Wealth constantly flows into my life.

My actions create constant prosperity.

I am aligned with the energy of abundance.

I constantly attract opportunities that create more money.

My finances improve beyond my dreams.

Money is the root of joy and comfort.

Money and spirituality can co-exist in harmony.

Money and love can be friends.

I am the master of my wealth.

I am able to handle large sums of money.

I am at peace with having a lot of money.

I can handle massive success with grace.

Money expands my life's opportunities and experiences.

Money creates positive impact in my life.
Share:

चक्रों के बारे में जानकारी

        हमारे शास्त्रों में चक्रों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है । मनुष्य के शरीर में सात चक्राकार घूमने वाले ऊर्जा केन्द्र होते हैं, जो मेरूदंड में अवस्थित होते है और मेरूदंड (Spinal Column) के आधार से ऊपर उठकर खोपड़ी तक फैले होते हैं। इन्हें चक्र कहते हैं, क्योंकि संस्कृत में चक्र का मतलब वृत्त, पहिया या गोल वस्तु होता है। इनका वर्णन हमारे उपनिषदों में मिलता है। प्रत्येक चक्र को एक विशेष रंग में प्रदर्शित किया जाता है एवं उसमे कमल की एक निश्चित संख्या में पंखुड़ियां होती हैं। हर पंखुड़ी में संस्कृत का एक अक्षर लिखा होता है। इन अक्षरों में से एक अक्षर उस चक्र की मुख्य ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है।
        ये चक्र प्राण ऊर्जा के कैंद्र हैं। यह प्राण ऊर्जा कुछ वाहिकाओं में बहती है, जिनको नाड़ियां कहते हैं। सुषुम्ना एक मुख्य नाड़ी है जो मेरुदन्ड में अवस्थित रहती है, दो पतली इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियां हैं जो मेरुदन्ड के समानान्तर क्रमशः बाई और दाहिनी तरफ उपस्थित रहती हैं। इड़ा और पिंगला मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों से संबन्ध बनाये रखती हैं। पिंगला बहिर्मुखी सूर्य नाड़ी है जो बाएं गोलार्ध से संबन्ध रखती है। इड़ा अन्तर्मुखी चंद्र नाड़ी है जो दाहिने गोलार्ध से संबन्ध रखती है।

       प्रत्येक चक्र भौतिक देह के विशिष्ट हिस्से और अंग से संबन्ध रखता है और उसे सुचारु रूप से कार्य करने हेतु आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध करवाता है। साथ में हर चक्र एक निश्चित स्तर तक के ऊर्जा कंपन को वर्णित करता है एवं विभिन्न चक्रों में मानव के शारीरिक एवं भावनात्मक पहलू भी प्रतिबिम्बित होते हैं। नीचे के चक्र शरीर के बुनियादी व्यवहार और आवश्यकता से संबन्धित हैं, सघन होते हैं और कम आवृत्ति पर कम्पन करते हैं। जबकि ऊपर के चक्र उच्च मानसिक और आध्यात्मिक संकायों से संबन्धित हैं। चक्रों में ऊर्जा का उन्मुक्त प्रवाह हमारे स्वास्थ्य और शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को सुनिश्चित करता है।

       आपकी सूक्ष्म देह, आपका ऊर्जा क्षेत्र और संपूर्ण चक्र-तंत्र का आधार प्राण है, जो कि ब्रह्मांड में जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। ये चक्र प्राण ऊर्जा का संचय, रूपान्तर और प्रवाह करते हैं और भौतिक देह के लिए प्राण ऊर्जा के प्रवेश-द्वार कहे जाते हैं। इस प्राण ऊर्जा के बिना भौतिक देह का अस्तित्व और जीवन संभव नहीं है।

आइये जानते हैं प्राथमिक सातों चक्र किस रूप में बताये गए हैं।

मूलाधार – Muladhara – आधार चक्रस्वाधिष्ठान – Svadhisthana – त्रिक चक्रमणिपुर – Mauipura – नाभि चक्रअनाहत – Anahata – हृदय चक्रविशुद्ध – Visuddha – कंठ चक्रअजन – Ajna – ललाट या तृतीय नेत्रसहस्रार – Sahasrara – शीर्ष चक्र

इसतरह भविष्य कथन की अनेकों प्रणालियां प्रचलित हैं।

मुलाधारा चक्र

Muladhara – आधारचक्र
चक्र के देवता- भगवान गणेश
चक्र की देवी – डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं।
तत्व – पृथ्वी
रंग – गहरा लाल 
बीज मंत्र – 'लं'

इस चक्र के दूषित होने से होने वाली बीमारियां

        रीढ़ की हड्डी की बीमारियां, जोड़ों का दर्द, रक्त विकार, शरीर विकाश की समस्या, कैंसर, कब्ज, गैस, सिर दर्द, गुदा सम्बंधित रोग, यौन रोग, संतान प्राप्ति में समस्यांए, मानसिक कमजोरी जैसी बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है।

        मूलाधार चक्र जिसका भी बिगड़ा होता है वह व्यक्ति जीवन में कभी भी स्थायित्व नहीं प्राप्त कर सकता "पृथ्वी" तत्व का बिगड़ना अर्थात जीवन में संघर्ष का बढ़ना

         चक्र जगाने की विधि मनुष्य तब तक पासुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसलिए भोग, निद्रा, और सम्भोग पर सयंम रखते हुए भगवान श्री गणेश को प्रणाम कर के 'लं' मन्त्र के उच्चारण के साथ इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। इसको जागृत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

इसका प्रभाव
इस चक्र के जागृत होनेपर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरुरी है।

स्वाधिष्ठान चक्र

Swadhisthana – त्रिक चक्र
वस्त्र चमकदार सुन्दर पिला रंग चक्र के देवता- भगवान विष्णु
चक्र की देवी – देवी राकनी ( वनस्पति की देवी ) नीले कमल की तरह
तत्व – जल
रंग – सिंदूरी, कला, सफ़ेद
बीज मंत्र – 'वं'

        द्वितीय चक्र उपस्थ में स्वाधिष्ठान चक्र के रूप में स्थित है। यह चक्र लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छः पंखुडियो वाला कमल होता है। यह कमल छः पंखुड़ियों वाला और छः योग नाड़ियों का मिलन स्थान है। स्वाधिष्ठान चक्र के जल तत्व में मूलाधार का पृथ्वी तत्व विलीन होने से कुटुम्बी और मित्रों से सम्बन्ध बनाने में कल्पना का उदय होने लगता है। इस चक्र के कारण मन में भावना जड़ पकड़ने लगती है। यह चक्र भी अपान वायु के अधीन होता है।

         अगर आप की ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आप के जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आप का जीवन कब ब्यतीत हो जायेगा आप को पता भी नहीं चलेगा और हाँथ फिर भी खाली रह जायेंगे।

        इस चक्र से ही प्रजनन क्रिया संपन्न होती है तथा इसका सम्बन्ध सीधे चंद्रमा से होता है। मनुष्य के शरीर में तीन चौथाई भाग जल है। चन्द्र मन का कारक है यह मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है। स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से सम्बंधित हैं। इन सभी कार्यों का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से ही होता है। इस चक्र के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित करने की कोशिश रहती है। यह चक्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकाश करता है।

        इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - यौन रोग, प्रजनन सम्बंधित बीमारियां, मूत्र रोग, तथा शारीरिक संबंधों में अत्यधिक तीव्रता, एवं विवाहेत्तर संबंधों का कारण भी इसी चक्र के दूषित होने पे देखने में आते हैं।

       चक्र जगाने की विधि जीवन में मनोरंजन जरुरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को वेहोशी में धकेलता है । फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आप के बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते । इस चक्र पर 'वं' मन्त्र के साथ ध्यान करने से यह चक्र जागृत होने लगता है।

इसका प्रभाव
इसके जागृत होने पर क्रूरता, गर्व आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वाश आदि दुर्गुणों का नाश होता है तथा क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है। सिद्धयां प्राप्त करने के लिए जरुरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों।

मणिपुर चक्र

Manipura – नाभि चक्र
चक्र के देवता- रूद्र ( मतान्तर से इंद्र, लक्ष्मी ) तीन आँखों वाले सरीर में विभूति सिंदूरी वर्ण
चक्र की देवी – लाकिनी सब का उपकार करने वाली रंग काला वस्त्र पिले हैं देवी आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं।
तत्व – अग्नि
रंग – पीला
बीज मंत्र – 'रं'

       यह चक्र नाभि मूल, नाभि से थोड़ा ऊपर स्थित होता है। यह स्थल शरीर का केंद्र है, जहाँ से ऊर्जा का वितरण होता है। यह नाभि केंद्र के पास और रीढ़ की हड्डी के भीतर स्थित होता है। इसकी स्थिति मेरुदंड के भीतर समझनी चाहिए। यह अग्नि तत्व प्रधान चक्र है। जो नीलवर्ण वाले दस दलों के एक कमल के सामान है तथा मणि के सामान चमकने वाला है। मणिपुर चक्र के प्रत्येक दल पर बीजाक्षर हैं चक्र के मध्य में उगते सूर्य की प्रभा के सामान तेजस्वी त्रिकोण रूप अग्नि छेत्र है जिनकी तीन भुजाओं पर स्वस्तिक है।

        जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहाँ एकत्रित है उसे काम करने की धुन सी सवार रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनियां का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - पाचन संबंधी रोग, पेस्टिक अल्सर, मधुमेह, रक्तशर्करा अल्पता, कब्ज, आंत्र-कृस्मृतिदोष, घबराहट आदि बीमारियां प्रकट होती हैं।

       चक्र जगाने की विधि आप के कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए अग्नि मुद्रा में बैठें अनामिका ऊँगली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगाएं अब इस चक्र पर ध्यान लगाएं। पेट से स्वास लें ।

इसका प्रभाव
       इसके सक्रीय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान का होना बहोत जरुरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरुरी है कि आप शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल, और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं ।

अनाहत चक्र

Anahata – ह्रदय चक्र
चक्र के देवता- ईश् श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति)
चक्र की देवी – काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है, तीन आँखे हैं चार हाँथ हैं।
तत्व – वायु
रंग – हरा, नीला, चमकदार, किरमिजी
बीज मंत्र – 'यं'

       अनाहत का अर्थ है जिसे घायल नहीं किया जा सके यह चक्र व्यक्ति के ह्रदय में स्थित होता है। इस चक्र में ' श्वेत रंग का कमल होता है जिसमे बारह पंखुरियाँ होती हैं। इस स्थान पर बारह नाड़ियाँ मिलती हैं। अनाहद चक्र में बारह ध्वनियां निकलती हैं। यह प्राण वायु का स्थान है। तथा यहीं से वायु नासिक द्वारा अंदर व् बाहर होती रहती है। प्राण वायु शरीर की मुख्य क्रिया का संपादन करता है जैसे वायु को सभी अंगों में पहुँचाना, अन्न-जल को पचाना, उसका रस बनाकर सभी अंगों में प्रवाहित करना, वीर्य बनाना, पसीने व् मूत्र के द्वारा पानी को बहार निकलना प्राणवायु का कार्य है। यह चक्र ह्रदय समेत नाक के ऊपरी भाग में मौजूद है तथा ऊपर की इंद्रियों का काम उसके अधीन है।

       अगर आप की ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होगें, हर क्षण आप कुछ न कुछ नया करने की सोचते रहते हैं, आप कहानीकार, चित्रकार, कवि, इंजिनियर आदि हो सकते हैं।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बिमारियों की सम्भावना होती है| ह्रदय एवं श्वास रोग, स्तन कैंसर, छाती में दर्द, उच्च रक्तचाप, रक्षाप्रणाली विकार आदि

       चक्र जगाने की विधि ह्रदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जागृत होने लगता है और शुष्मना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

इसका प्रभाव
       इसके जागृत होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। तथा प्रेम और संवेदना मन में जाग्रत होती हैं तथा मन की इच्छा पूर्ण होती है। ज्ञान स्वतः ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक, रूप से जिम्मेदार, एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैसी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

विशुद्ध चक्र

Visuddha – कंठ चक्र
देवता- सदाशिव रंग सफेद, तीन आँखे, पञ्च मुख, दस भुजाएं
चक्र की देवी – सकिनी वस्त्र पिले चन्द्रमां के सागर से भी पवित्र तत्व
तत्व – आकाश
रंग – बैगनी
बीज मंत्र – 'हं'

       विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है जहाँ सरस्वती का स्थान है। यह चक्र बहोत ही महत्वपूर्ण होता है। यह जागृत होते ही व्यक्ति को वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है, माता सरस्वती की कृपा होती है, आयु की वृद्धि होती है, संगीत विद्या की सिद्धि प्राप्त होती है, शब्द का ज्ञान होता है व्यक्ति विद्वान होता है। यह चक्र अपने अनुभवों के बारे में बोलने की तीव्र इच्छा शक्ति प्रदान करता है। यह चक्र श्रवण का भी केंद्र है और मनुष्य के सुनने की शक्ति इतनी विकसित कर देता है कि वह कानो से ही नहीं मन से भी सुनने लगता है।

       यह सोलह पंखुडियों वाला कमल का फूल प्रतीत होता है क्योंकि यहाँ 16 नाड़ियाँ आपस में मिलती हैं । इनके मिलने से कमल की आकृति बनती है इस चक्र में 'अ' से 'अः' तक सोलह ध्वनियां निकलती हैं। इस चक्र का ध्यान करने से दिव्य दृष्टि, दिव्य ज्ञान, तथा समाज के लिए कल्याणकारी भावना पैदा होती है।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां होने की सम्भावना होती हैं| थायरॉयड विकार, जुकाम और ज्वर, संक्रमण, मुंह, जबड़ा, जिह्वा, कन्धा, और गर्दन सम्बन्धी रोग, उग्रता, हार्मोनल विकार, मनोदशा विकार, रजोनिवृत्ति जनित रोग, आदि रोग होने की प्रबल सम्भावना होती है।

       चक्र जगाने की विधि कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

इसका प्रभाव
इसके जागृत होने पर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जगृत होने से व्यक्ति अपने व्यवहार में अत्यन्त सत्यनिष्ठ, कुशल और मधुर हो जाता है और व्यर्थ के तर्क-वितर्क में नहीं फंसता, बिना अहम् को बढ़ावा दिए परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में वह अत्यन्त युक्ति कुशल हो जाता है।

अजना चक्र

Ajna – आज्ञा चक्र
तत्व – मन का तत्व ( अनुपद तत्व )
रंग – सफेद
बीज मंत्र – 'ॐ '

यह चक्र मस्तक के मध्य में भौहों के बीच स्थित है। इसी लिए इसे तीसरा नेत्र भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केंद्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह प्रमुख तीन नाड़ियों

इड़ा - चन्द्र नाड़ीपिंगला - सूर्य नाड़ीसुषुम्ना - केंद्रीय, मध्य नाड़ी

के मिलन का स्थान है। जब तीनो नाडियों की ऊर्जा यहाँ मिलती है और आगे उठती है, तब समाधी प्राप्त होती है, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है। व्यक्ति अलौकिक हो जाता है। बौद्धिक रूप से सम्पन्नता प्राप्त होती है।

आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुड़ियों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर ' केवल दो' आत्मा और परमात्मा( स्व और ईश्वर ) ही हैं। आज्ञा चक्र आंतरिक गुरु का पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। सामान्य तौर पर कहा जाये तो जिस व्यक्ति ऊर्जा यहाँ ज्यादा सक्रिय है तो वह व्यक्ति बहोत तेज दिमांक का बन जाता है।

इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना होती है| आधा सीसी का दर्द, मतिभ्रम, जुकाम और ज्वर, हार्मोनल विकार, मनोदशा विकार, आँखं, माथा, सम्बंधित रोग होने के प्रबल सम्भावना होती है।

चक्र जगाने की विधि भृकुटि के मध्य ( भौहों के बीच ) ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

इसका प्रभाव
यहाँ अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं। और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

सहस्रार चक्र

Sahasrara – शीर्ष चक्र (मुकुट केंद्र)
भगवान – शंकर तत्व – सर्व तत्व ( आत्म तत्व )
रंग – बैंगनी
बीज मंत्र – 'ॐ' 
सहस्रार = हजार , असंख्य, अनंत

       सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "ब्रह्म रन्ध्र" ( ईश्वर का दरबार ) या "लक्ष किरणों का केंद्र" भी कहा जाता है। ऊपर से देखने देखने पर इसमें कुल 972 पंखुड़ियां दिखाई देती है। इसमें नीचे 960 छोटी-छोटी पंखुड़ियाँ और उनके ऊपर मध्य में 12 सुनहरी पंखुड़ियाँ सुशोभित रहती है। इसे हजार पंखुड़ियों वाला कमल कहते हैं।इसका चिन्ह खुला हुआ कमल का फूल है जो असीम आनन्द का केंद्र होता है। इस में इंद्रधनुष के सारे रंग दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रंग बैगनी होता है। इस चक्र में 'अ' से 'क्ष' तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती है। पिट्यूटीऔर पीनियल ग्रंथि का आंशिक भाग इसमें संबंधित है। यह मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा और दाईं आंख को नियंत्रित करता है। यह आत्मज्ञान, आत्म दर्शन, एकीकरण, स्वर्गीय अनुभूति के विकास का मनोवैज्ञानिक केंद्र है। सहस्रार को कैलास पर्वत के रूप में इंगित करने तथा भगवान शंकर के तप रत होने की स्थिति भी योगी जन कहते हैं।

       योग शास्त्रों के अनुसार सहस्रबाहो दोनों कनपटियों से दो-दो इंच अंदर और भौहों से भी लगभग तीन-तीन इंच अंदर मस्तिष्क मध्य में महावीर नामक महारुद्र के ऊपर छोटे से पोले भाग में ज्योतिपुंज के रूप में अवस्थित है। तत्वदर्शी यों के अनुसार यह उलटे छोटे या कटोरे के समान दिखाई देता है। छान्दोग्य-उपनिषद में सहस्रार दर्शन की सिद्धि का वर्णन करते हुए कहा गया है - "तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचोर भवति"

       अर्थात सहस्रार को जागृत कर लेने वाला व्यक्ति संपूर्ण भौतिक विज्ञान की सिद्धियां हस्तगत कर लेता है। यही वह शक्ति केंद्र है जहां से मस्तिष्क शरीर का नियंत्रण करता है। और विश्व में जो कुछ भी मानव-हित के लिए विलक्षण विज्ञान दिखाई देता है उस का संपादन करता है। इसे ही दिव्य दृष्टि का स्थान कहते है। मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक सभी चक्रों के जागरण की कुंजी सहस्रार चक्र के पास ही है। कह सकते हैं कि सारे चक्रों का यही मास्टर स्विच है।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना होती है| सिरदर्द, मानसिक रोग, नाडीशूल, मिर्गी, मस्तिष्क रोग, एल्झाइमर, त्वचा में चकत्ते आदि रोग होने की प्रबल सम्भवना होती है।

       चक्र जगाने की विधि यह वास्तव में चक्र नहीं है बल्कि साक्षात तथा संपूर्ण परमात्मा और आत्मा है। जो व्यक्ति सहस्रार चक्र का जागरण करने में सफल हो जाते हैं, वे जीवन मृत्यु पर नियंत्रण कर लेते हैं सभी लोगों में अंतिम दो चक्र सोई हुई अवस्था में रहते हैं। अतः इस चक्र का जागरण सभी के बस में नहीं होता है। इसके लिए कठिन साधना व लंबे समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसका मन्त्र 'ॐ' है।

इसका प्रभाव
       शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत् का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।
Share:

Thursday, May 18, 2017

Rani Ki Vav , Patan રાણકી વાવ

          रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया।
पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्‍मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। राजा भीमदेव ही सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था। 
          यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है। वाव के खंभे सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
           'रानी की वाव' को विश्व विरासत की नई सूची में शामिल किए जाने का औपचारिक ऐलान कर दिया गया है। 11वीं सदी में निर्मित इस वाव को यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने भारत में स्थित सभी बावड़ी या वाव (स्टेपवेल) की रानी का भी खिताब दिया है। इसे जल प्रबंधन प्रणाली में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का बेहतरीन उदाहरण माना है। 11वीं सदी का भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना का अनूठे प्रकार का सबसे विकसित एवं व्यापक उदाहरण है यह, जो भारत में वाव निर्माण के विकास की गाथा दर्शाता है। सात मंजिला यह वाव मारू-गुर्जर शैली का साक्ष्य है। ये करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी । इसे भारतीय पुरातत्व सर्वे ने वापस खोजा।

Ranik ki vav
Rani ki vav 

રાણકી વાવ
રાણી ની વાવ

Rani ki vav
રાણકી વાવ 

રાણકી વાવ
રાણકી વાવ 

Share:

સારાં અક્ષર કાઢવા માટે શું કરવું ?

 સારાં અક્ષર કાઢવા માટે શું કરવું ? વિદ્યાર્થી મિત્રો, તમે ક્યારેક ને ક્યારેક તમારા શિક્ષક પાસે સાંભળ્યું હશે કે "આપણા અક્ષર મોતીના દાણ...

Wesak 2024

Time converter at worldtimebuddy.com

Papers for exam


Search This Blog

Blog Archive

Labels

Jayesh Modi hindi JayeshModi gmcks pranic healing Forgiveness std 9 પક્ષી બચાઓ અભિયાન gseb poster twin hearts ઉત્તરાયણ Prayer of St. Francis Question gujarat healing mcks paper prayer twin hearts meditation कक्षा 9 ક્ષમા વૃક્ષારોપણ 7 steps Food for hunger GMCKS quotes Hindi vyakaran Tithing arhatic deesa easy exam gujarati guru purnima insomenia lord make me an instrument love meditation mobile prosperity quotes rashtrabhasha savebirds the great invocation prayer आराधना ધોરણ 9 પર્યાવરણ લોહીની સગાઈ સંત અસિસી ની ગુજરાતીમાં પ્રાર્થના સમૃદ્ધિ 2. ચોરી અને પ્રાયશ્ચિત Chakra Cholesterol Emotional healing Golden rule Rani Ki Vav Sochiye aur amir baniye Spleen chakra Students Varsha ritu Vitamin b12 You can heal your life aaradhna abundance affirmation ajna chakra alasi anahat chakra anger annual anxiety awareness b12 basic chakra basic pranic healing benifits bhavvachak budhi kaki chori ane prayaschit crown chakra depression divine love doctors donation drama english faith on god faith on guru gandhiji god health hindi nibandh hope human love kahani kahavaten kindness knowledge kovid louce Hey marjiviya marjiviya kavya marjiviya meaning mcq test memories muhavare osho paryayvachi shabda patan pratra lekhan premchand protocal quiz quotes of the day ranikivav result s.c.w.highschool salutatation samanarthi shabda second sense serve service sex chakra sharanagathi solution ssc stress test thanx vasant bapat vatenary writing उत्तरायण कक्षा 10 डीसा निबंध लेखन पक्षी बचाओ अभियान पत्र लेखन पर्यायवाची शब्द प्रथम वार्षिक परीक्षा के पूर्व तैयारी बारिश बूढ़ी काकी भाववाचक संज्ञाएं मुठिया वसूलना मेघ मेरी बिमारी श्यामाने ले ली राष्ट्रभाषा वर्षारूतु वसंत बापट विचार सकारात्मक समानार्थी शब्द समृद्धि सुविचार स्वामी विवेकानंद जयंती हिंदी का महत्व हिन्दी અળસી એકમ કસોટી કાવ્ય ક્રોધ ગુજરાતી ચોરી અને પ્રાયશ્ચિત ટેસ્ટ ડીસા દશાંશ દાન નરસિંહ મહેતા નાટક પક્ષીઓ પ્રકૃતિ પ્રથમ વાર્ષિક પરીક્ષા પ્રથમ વાર્ષિક પરીક્ષાનું હિન્દી નું પ્રશ્નપત્ર પ્રશ્નપત્ર મરજીવિયા મહાન આહ્વાન મહાપ્રાર્થના મોબાઈલ વર્ષાઋતુ વૃક્ષો નું મહત્વ શિષ્ટાચાર સભ્યતા સાંજ સમે શામળિયો સારાં અક્ષર સ્વસ્થ ભારત હિન્દી હોશ

Ads Section

Breaking Ticker

Featured Section

Labels