* नि म्नलि खि त प्रश्नो के सा थ दि ए गए वि कल्पों मे से सही वि कल्प चुनकर उतर लि खि ए: [3]
1. भारत के निवासी कौन है?
(A) द्रविड (B) मंगोल (C) शक (D) आर्य
जवाब : आर्य
2. आर्य कि सकी मदि रा नहीं पी ते थे?
(A) स्वार्थ की (B) मोह की (C) गर्व की (D) धन की
जवा ब : स्वार्थ की
3. आर्य क्या हो कर नहीं बैठ सकते थे ?
(A) निश्चेष्ट (B) साधु (C) आलसी (D) राजा
जवा ब : निश्चेष्ट
* आशय स्पष्ट कीजिए : [3]
4. वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का सिरमौर है।
जवाब :
सिरमौर का अर्थ है- सरदार अथवा श्रेष्ठ चरित्रवाला नायक। प्राचीनकाल में ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत सबसे आगे
था । भारत ने ही दुनिया को भिन्न-भिन्न विद्याएँ सिखाई और कला -कौशल की जानकारी दी । इस देश ने ही संसार को
सभ्यता और संस्कृति के पाठ सिखाए। आज भी हमारा देश संसार को सुख, शांति और मानवता का संदेश दे रहा है।
इस क्षेत्र में दुनिया उसके नेतृत्व को सराह रही है।
* निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए : [12]
5. भारत को .................... कहा गया है ।
जवाब :
ॠषि भूमि
6. वृद्ध भारतवर्ष ही संसार का .............है ।
जवाब :
सिरमौर
7. विधिने ............. का विस्तार यही से किया है ।
जवाब : नरसृष्टि
8. भारत के निवासी ................ है ।
जवाब : आर्य
9. आर्यों की संतान की आज .................... हो गई है ।
जवाब : अधोगति
10. भगवान की भवभुतियो का यह ............... भंडार है ।
जवाब : प्रथम
11. आर्य कभी अपने लिए ..................... ।
जवाब: जीते न थे
12. कवि ने भारतवर्ष को ................... देश कहा है ।
जवाब : पुरातन
13. भारत – गौरव के कवि ................ है ।
जवाब :
मैथिलीशरण
14. आर्य कभी .................. हो कर नहीं बैठ सकते ।
जवाब : निष्क्रिय
15. भारत ....... भूमि के रूप मे प्रसिद्द है ।
जवाब : पुण्यभूमि
16. संपूर्ण देशो से .................. देश का उत्कर्ष अधिक है ।
जवाब : भारत
* निम्नलिखित काव्य पंक्ति को पूर्ण कीजिए : [6]
17. भू-लो क का गौरव ........... गंगा जल जहाँ ।
जवा ब : भू-लो क का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला -स्थल कहाँ ?
फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगा जल जहाँ ।
18. यह पुण्यभूमि ........... आचा र्य हैं।
जवाब : यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है, इसके निवासी आर्य हैं,
विद्या , कला -कौशल सबके जो प्रथम आचार्य हैं।
19. वे आर्य ही ............ पीते न थे।
जवाब : वे आर्य ही थे जो कभी अपने लिए जीते न थे;
वे स्वार्थ- रत हो मोह की मदिरा कभी पीते न थे।
* निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए : [10]
20. भारत को प्रकृति का लीला -स्थल क्यों कहा है?
जवाब : भारत में हिमालय के समान मनोहर पर्वत तथा गंगा जैसी पवित्र नदियाँ हैं। इसलिए इस देश को प्रकृति का
लीला -स्थल कहा है।
21. भारतवर्ष को वृद्ध क्यों कहा गया है.?
जवाब : भारत संसार का सबसे पुराना देश है। इसलिए उसे वृद्ध कहा है।
22. विधाता ने नर-सृष्टि का विस्तार कहाँ से किया है?
जवा ब : वि धा ता ने नर-सृष्टि का वि स्ता र भा रत से कि या है।
23. आर्य कि न-कि न वि षयों के आचा र्य थे?
जवा ब : आर्य सभी तरह की वि द्या ओं तथा कला -कौ शल में आचा र्य थे।
24. आर्यों की संता न आज कि स स्थि ति में जी रही है?
जवा ब : आर्यों की संता न आज अधो गति में जी रही है।
25. आर्यों की क्या वि शेषता एँ रही हैं.?
जवा ब : आर्य हमेशा स्वा र्थ से अधि क परो पका र को महत्त्व देते हैं। वे मो ह से दूर रहते हैं और नि ष्क्रि य रहना पसंद
नहीं करते।
26. भा रत कि सका गौ रव है?
जवा ब : भा रत भू-लो क का गौ रव है।
27. भा रत कि सका सि रमौ र है?
जवा ब : भा रत संसा र का सि रमौ र है।
28. भा रत कि सका प्रथम भंडा र है?
जवा ब : भा रत भगवा न की भव-भूति यों का प्रथम भंडा र है।
29. संसा र को सबसे पहले वि द्या -कला और ज्ञा न कि सने दि या ?
जवा ब : संसा र को सबसे पहले वि द्या -कला और ज्ञा न हमा रे भा रतदेश के आचा र्यों ने दि या ।
* नि म्नलि खि त प्रश्नों के उत्तर दो -ती न वा क्यों में लि खि ए : [16]
30. भा रत को प्रकुति का ली ला - स्थल क्यों कहा है ?
जवा ब :
भा रत में मनो हर हि मा लय पर्वत और पवि त्र गंगा नदी है, इसलि ए भा रत को प्रकुति का ली ला – स्थल कहा है ।
31. भा रतवर्ष को वृद्द क्यों कहा है ?
जवा ब :
भा रत संसा र का सबसे पुरा ना देश है। इसलि ए उसे वृद्ध कहा है।
32. वि धा ता ने नर – सुष्टि का वि स्ता र कहा से कि या है ?
जवा ब :
वि धा ता ने नर – सुष्टि का वि स्ता र भा रत –वर्ष से कि या है ।
33. आर्य कि न – कि न वि षयो के आचा र्य थे ?
जवा ब :
आर्य सभी प्रका र की वि धा , कला और कौ शल्य के आचा र्य थे ।
34. आर्यों की संता न आज कि स स्थि ति मे जी रही है ?
जवा ब :
आर्यों की संता न आज अधो गति की स्थि ति में जी रही है ।
35. आर्यों की क्या वि शेषता एँ रही हैं ?
जवा ब :
आर्य हमेशा स्वा र्थ से अधि क परो पका र को महत्व देते है । वे मो ह से दूर रहते है । आर्य सभी प्रका र की वि धा ,कला
और कौ शल के स्वा मी थे ।
36. भा व स्पष्ट की जि ए : वृद्ध भा रतवर्ष ही संसा र का सि रमौ र है।
जवा ब : सि रमौ र का अर्थ है- सरदा र अथवा श्रेष्ठ चरि त्रवा ला ना यक। प्रा ची नका ल में ज्ञा न-वि ज्ञा न के क्षेत्र में भा रत
सबसे आगे था । भा रत ने ही दुनि या को भि न्न-भि न्न वि द्या एँ सि खा ई और कला -कौ शल का जा न दि या । इस देश ने ही
संसा र को सभ्यता और संस्कृति के पा ठ सि खा ए। आज भी हमा रा देश संसा र को सुख, शां ति और मा नवता का
संदेश दे रहा है। इस क्षेत्र में दुनि या उसके नेतृत्व को सरा ह रही है।
37. भा व स्पष्ट की जि ए : भगवा न की भव-भूति यों का यह प्रथम भण्डा र है।
जवा ब : भव-भूति याँ अर्था त् संसा र के वैभव के उपकरण। सो ना , चां दी , ही रे-मो ती आदि बहुमूल्य पदा र्थों का भा रत ने
पता लगा या । रेशमी वस्त्र बना ने की कला यहीं वि कसि त हुई। इस प्रका र भा रत में केवल ज्ञा न-वि ज्ञा न का वि का स हो नहीं हुआ, वैभव के उपकरणों का उपयो ग भी यहीं से आरंभ हुआ।
* नि म्नलि खि त प्रश्नों के उत्तर पाँ च-छ वा क्यों में लि खि ए : [12]
38. भा रतवा सि यों के बा रे में गुप्तजी क्या कहते हैं ?
जवा ब :
गुप्तजी के अनुसा र भा रतवा सी आर्यों की संता नें हैं। एक समय था जब आर्य वि द्या और कला -कौ शल में सबसे आगे
थे। ज्ञा नवि ज्ञा न के क्षेत्र में उनका को ई मुका बला नहीं कर सकता था । परंतु उन महा न आर्यों की संता न हो कर भी
आज भा रतवा सी अधो गति में पड़े हुए हैं। प्रगति की दौ ड़ में वे बुरी तरह पि छड़ गए हैं। फि र भी अपने महा न पूर्वजों
के उच्च आदर्शों को वे भूले नहीं हैं।
39. गुप्तजी ने भा रत के गौ रव को कि स रूप में हमा रे सा मने रखा है ?
जवा ब :
गुप्तजी कहते हैं कि भा रत प्रकृति का पुण्य ली ला -स्थल है। यह ऋषि यों की पा वन भूमि है। भा रत ही संसा र का
सि रमौ र है। भगवा न की बना ई हुई भव-भूति यों का सबसे पहला भंडा र भा रतवर्ष ही है। यहाँ के नि वा सी आर्यों की
यह प्रसि द्ध भूमि है। आर्यों ने ही संसा र को वि द्या और कला -कौ शल की शि क्षा दी । इस प्रका र कवि ने भा रत के गौ रव
को हमा रे सा मने रखा है।
40. आर्यों के उच्च चरि त्र के बा रे में गुप्तजी ने क्या कहा है?
जवा ब :
गुप्तजी कहते हैं कि आर्य ऊँचे आदशों के सा थ जी वन जी ते थे। परो पका र ही उनके जी वन का उद्देश्य था । दूसरों के
लि ए जी ने में ही वे अपने जी वन की सा र्थकता मा नते थे। स्वा र्थ की भा वना से वे को सों दूर थे। वे कर्मवी र थे। नि ष्क्रि य
हो कर बैठना वे नहीं जा नते थे। इस प्रका र गुप्तजी ने आर्यों के उच्च चरि त्र की प्रशंसा की है।
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pls post your opinion, atma namaste !!