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Jayesh Modi

live a life with purpose and joyfully

Jayesh Modi

During teaching

Sunday, June 4, 2017

70 पॉजिटिव विचार

70  positive points

आपके लिए प्रस्तुत है कुछ सकारात्मक विचार, को आपको पॉजिटिव बनाएं।
 

1:- जीवन में वो ही व्यक्ति असफल होते है, जो सोचते है पर करते नहीं ।

2 :- भगवान के भरोसे मत बैठिये क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो…

3 :- सफलता का आधार है सकारात्मक सोच और निरंतर प्रयास !!!

4 :- अतीत के ग़ुलाम नहीं बल्कि भविष्य के निर्माता बनो…

5 :- मेहनत इतनी खामोशी से करो की सफलता शोर मचा दे…

6 :- कामयाब होने के लिए अकेले ही आगे बढ़ना पड़ता है, लोग तो पीछे तब आते है जब हम कामयाब होने लगते है.

7 :- छोड़ दो किस्मत की लकीरों पे यकीन करना, जब लोग बदल सकते हैं तो किस्मत क्या चीज़ है…

8 :- यदि हार की कोई संभावना ना हो तो जीत का कोई अर्थ नहीं है…

9 :- समस्या का नहीं समाधान का हिस्सा बने…

10 :- जिनको सपने देखना अच्छा लगता है उन्हें रात छोटी लगती है और जिनको सपने पूरा करना अच्छा लगता है उनको दिन छोटा लगता है…

11 :- आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते पर आप अपनी आदतें बदल सकते है और निशचित रूप से आपकी आदतें आपका भविष्य बदल देगी !

12 :- एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जानें के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को ज़िंदगी कहते है !!!

13 :- वो सपने सच नहीं होते जो सोते वक्त देखें जाते है, सपने वो सच होते है जिनके लिए आप सोना छोड़ देते है…

14 :- सफलता का चिराग परिश्रम से जलता है !!!

15 :- जिनके इरादे बुलंद हो वो सड़कों की नहीं आसमानो की बातें करते है…

16 :- सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं…

17 :- मैं तुरंत नहीं लेकिन निश्चित रूप से जीतूंगा…

18 :- सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगें लोग…

19 :- आशावादी हर आपत्तियों में भी अवसर देखता है और निराशावादी बहाने !!!

20 :- आप में शुरू करने की हिम्मत है तो, आप में सफल होने के लिए भी हिम्मत है…

21 :- सच्चाई वो दिया है जिसे अगर पहाड़ की चोटी पर भी रख दो तो बेशक रोशनी कम करे पर दिखाई बहुत दूर से भी देता है.

22 :- संघर्ष में आदमी अकेला होता है, सफलता में दुनिया उसके साथ होती है ! जिस जिस पर ये जग हँसा है उसी उसी ने इतिहास रचा है.

23 :- खोये हुये हम खुद है और ढूढ़ते ख़ुदा को है !!!

24 :- कामयाब लोग अपने फैसले से दुनिया बदल देते है और नाकामयाब लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल लेते है…

25 :- भाग्य को और दूसरों को दोष क्यों देना जब सपने हमारे है तो कोशिशें भी हमारी होनी चाहियें !!!

26 :- यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी प्रत्येक भूल उसे कुछ न कुछ सिखा देती है !!!

27 :- झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फड़ाते है तरक्की के बाज़ की उड़ान में कभी आवाज़ नहीं होती…

28 :- समस्या का सामना करें, भागे नहीं, तभी उसे सुलझा सकते हैं…

29 :- परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतराना मनुष्य की सबसे बड़ी कायरता है.

30 :- सुंदरता और सरलता की तलाश चाहे हम सारी दुनिया घूम के कर लें लेकिन अगर वो हमारे अंदर नहीं तो फिर सारी दुनिया में कहीं नहीं है.

31 :- ना किसी से ईर्ष्या ना किसी से कोई होड़, मेरी अपनी मंज़िलें मेरी अपनी दौड़…

32 :- ये सोच है हम इंसानों की कि एक अकेला क्या कर सकता है, पर देख ज़रा उस सूरज को वो अकेला ही तो चमकता है !!!

33 :- लगातार हो रही सफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि कभी कभी गुच्छे की आखिरी चाबी भी ताला खोल देती है…

34 :- जल्द मिलने वाली चीजें ज्यादा दिन तक नहीं चलती और जो चीजें ज्यादा दिन तक चलती है वो जल्दी नहीं मिलती है.

35 :- इंसान तब समझदार नहीं होता जब वो बड़ी बड़ी बातें करने लगे, बल्कि समझदार तब होता है जब वो छोटी छोटी बातें समझने लगे…

36 :- सेवा सभी की करना मगर आशा किसी से भी ना रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य नही दे सकते है, 

37 :- मुश्किल वक्त का सबसे बड़ा सहारा है "उम्मीद" !! जो एक प्यारी सी मुस्कान दे कर कानों में धीरे से कहती है "सब अच्छा होगा" !!

38 :- दुनिया में कोई काम असंभव नहीं, बस हौसला और मेहनत की जरुरत है !!!

39 :- वक्त आपका है चाहे तो सोना बना लो और चाहे तो सोने में गुजार दो, दुनिया आपके उदाहरण से बदलेगी आपकी राय से नहीं…

40 :- बदलाव लाने के लिए स्वयं को बदले…

41 :- सफल व्यक्ति लोगों को सफल होते देखना चाहते है, जबकि असफल व्यक्ति लोगों को असफल होते देखना चाहते है…

42 :- घड़ी सुधारने वाले मिल जाते है लेकिन समय खुद सुधारना पड़ता है !!!

43 :- दुनिया में सब चीज मिल जाती है केवल अपनी ग़लती नहीं मिलती…

44 :- क्रोध और आंधी दोनों बराबर… शांत होने के बाद ही पता चलता है की कितना नुकसान हुवा…

45 :- चाँद पे निशान लगाओ, अगर आप चुके तो सितारों पे तो जररू लगेगा !!!
46 :- गरीबी और समृद्धि दोनों विचार का परिणाम है…

47 :- पसंदीदा कार्य हमेशा सफलता, शांति और आनंद ही देता है…

48 :- जब हौसला बना ही लिया ऊँची उड़ान का तो कद नापना बेकार है आसमान का…

49 :- अपनी कल्पना को जीवन का मार्गदर्शक बनाए अपने अतीत को नहीं…

50 :- समय न लागओ तय करने में आपको क्या करना है, वरना समय तय कर लेगा की आपका क्या करना है.

51 :- अगर तुम उस वक्त मुस्कुरा सकते हो जब तुम पूरी तरह टूट चुके हो तो यकीन कर लो कि दुनिया में तुम्हें कभी कोई तोड़ नहीं सकता !!!

52 :- कल्पना के बाद उस पर अमल ज़रुर करना चाहिए। सीढ़ियों को देखते रहना ही पर्याप्त नहीं है, उन पर चढ़ना भी ज़रुरी है।

53 :- हमें जीवन में भले ही हार का सामना करना पड़ जाये पर जीवन से कभी नहीं हारना चाहिए…

54 :- सीढ़ियां उन्हें मुबारक हो जिन्हें छत तक जाना है, मेरी मंज़िल तो आसमान है रास्ता मुझे खुद बनाना है !!!

55 :- हजारों मील के सफ़र की शुरुआत एक छोटे कदम से होती है…

56 :- मनुष्य वही श्रेष्ठ माना जाएगा जो कठिनाई में अपनी राह निकालता है ।

57 :- पुरुषार्थ से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है…

58 :- प्रतिबद्ध मन को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है, पर अंत में उसे अपने परिश्रम का फल मिलेगा ।

59 :- असंभव समझे जाने वाला कार्य संभव करके दिखाये, उसे ही प्रतिभा कहते हैं ।

60 :- आने वाले कल को सुधारने के लिए बीते हुए कल से शिक्षा लीजिए…

61 :- जो हमेशा कहे मेरे पास समय नहीं है, असल में वह व्यस्त नहीं बल्कि अस्त-व्यस्त है ।

62 :- कठिनाइयाँ मनुष्य के पुरुषार्थ को जगाने आती हैं…

63 :- क्रोध वह हवा है जो बुद्धि के दीप को बुझा देती है ।

64 :- आपका भविष्य उससे बनता है जो आप आज करते हैं, उससे नहीं जो आप कल करेंगे…

65 :- बन सहारा बे सहारों के लिए बन किनारा बे किनारों के लिए, जो जिये अपने लिए तो क्या जिये जी सको तो जियो हजारों के लिए ।

66 :- चाहे हजार बार नाकामयाबी हो, कड़ी मेहनत और सकारात्मक सोच के साथ लगे रहोगे तो अवश्य सफलता तुम्हारी है…

67 :- खुद की तरक्की में इतना समय लगा दो, कि किसी और की बुराई का वक्त ही ना मिले !!!

68 :- प्रगति बदलाव के बिना असंभव है, और जो अपनी सोच नहीं बदल सकते वो कुछ नहीं बदल सकते…

69 :- खुशी के लिए काम करोगे तो ख़ुशी नहीं मिलेगी, लेकिन खुश होकर काम करोगे, तो ख़ुशी और सफलता दोनों ही मिलेगी ।

70 :- पराजय तब नहीं होती जब आप गिर जाते हैं, पराजय तब होती है जब आप उठने से इनकार कर देते हैं ।
      
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Saturday, May 27, 2017

Prosperity affirmation

AFFIRMATIONS FOR MONEY 

I am a magnet for money. 

Prosperity is drawn to me.

Money comes to me in expected and unexpected ways.

I move from poverty thinking to abundance thinking.

I am worthy of making more money.

I am open and receptive to all the wealth life offers me.

I embrace new avenues of income.

I welcome an unlimited source of income and wealth in my life.

I release all negative energy over money.

Money comes to me easily and effortlessly.

I use money to better my life and the lives of others.

Wealth constantly flows into my life.

My actions create constant prosperity.

I am aligned with the energy of abundance.

I constantly attract opportunities that create more money.

My finances improve beyond my dreams.

Money is the root of joy and comfort.

Money and spirituality can co-exist in harmony.

Money and love can be friends.

I am the master of my wealth.

I am able to handle large sums of money.

I am at peace with having a lot of money.

I can handle massive success with grace.

Money expands my life's opportunities and experiences.

Money creates positive impact in my life.
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चक्रों के बारे में जानकारी

        हमारे शास्त्रों में चक्रों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है । मनुष्य के शरीर में सात चक्राकार घूमने वाले ऊर्जा केन्द्र होते हैं, जो मेरूदंड में अवस्थित होते है और मेरूदंड (Spinal Column) के आधार से ऊपर उठकर खोपड़ी तक फैले होते हैं। इन्हें चक्र कहते हैं, क्योंकि संस्कृत में चक्र का मतलब वृत्त, पहिया या गोल वस्तु होता है। इनका वर्णन हमारे उपनिषदों में मिलता है। प्रत्येक चक्र को एक विशेष रंग में प्रदर्शित किया जाता है एवं उसमे कमल की एक निश्चित संख्या में पंखुड़ियां होती हैं। हर पंखुड़ी में संस्कृत का एक अक्षर लिखा होता है। इन अक्षरों में से एक अक्षर उस चक्र की मुख्य ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है।
        ये चक्र प्राण ऊर्जा के कैंद्र हैं। यह प्राण ऊर्जा कुछ वाहिकाओं में बहती है, जिनको नाड़ियां कहते हैं। सुषुम्ना एक मुख्य नाड़ी है जो मेरुदन्ड में अवस्थित रहती है, दो पतली इड़ा और पिंगला नाम की नाड़ियां हैं जो मेरुदन्ड के समानान्तर क्रमशः बाई और दाहिनी तरफ उपस्थित रहती हैं। इड़ा और पिंगला मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों से संबन्ध बनाये रखती हैं। पिंगला बहिर्मुखी सूर्य नाड़ी है जो बाएं गोलार्ध से संबन्ध रखती है। इड़ा अन्तर्मुखी चंद्र नाड़ी है जो दाहिने गोलार्ध से संबन्ध रखती है।

       प्रत्येक चक्र भौतिक देह के विशिष्ट हिस्से और अंग से संबन्ध रखता है और उसे सुचारु रूप से कार्य करने हेतु आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध करवाता है। साथ में हर चक्र एक निश्चित स्तर तक के ऊर्जा कंपन को वर्णित करता है एवं विभिन्न चक्रों में मानव के शारीरिक एवं भावनात्मक पहलू भी प्रतिबिम्बित होते हैं। नीचे के चक्र शरीर के बुनियादी व्यवहार और आवश्यकता से संबन्धित हैं, सघन होते हैं और कम आवृत्ति पर कम्पन करते हैं। जबकि ऊपर के चक्र उच्च मानसिक और आध्यात्मिक संकायों से संबन्धित हैं। चक्रों में ऊर्जा का उन्मुक्त प्रवाह हमारे स्वास्थ्य और शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को सुनिश्चित करता है।

       आपकी सूक्ष्म देह, आपका ऊर्जा क्षेत्र और संपूर्ण चक्र-तंत्र का आधार प्राण है, जो कि ब्रह्मांड में जीवन और ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। ये चक्र प्राण ऊर्जा का संचय, रूपान्तर और प्रवाह करते हैं और भौतिक देह के लिए प्राण ऊर्जा के प्रवेश-द्वार कहे जाते हैं। इस प्राण ऊर्जा के बिना भौतिक देह का अस्तित्व और जीवन संभव नहीं है।

आइये जानते हैं प्राथमिक सातों चक्र किस रूप में बताये गए हैं।

मूलाधार – Muladhara – आधार चक्रस्वाधिष्ठान – Svadhisthana – त्रिक चक्रमणिपुर – Mauipura – नाभि चक्रअनाहत – Anahata – हृदय चक्रविशुद्ध – Visuddha – कंठ चक्रअजन – Ajna – ललाट या तृतीय नेत्रसहस्रार – Sahasrara – शीर्ष चक्र

इसतरह भविष्य कथन की अनेकों प्रणालियां प्रचलित हैं।

मुलाधारा चक्र

Muladhara – आधारचक्र
चक्र के देवता- भगवान गणेश
चक्र की देवी – डाकिनी जिसके चार हाँथ हैं, लाल आँखे हैं।
तत्व – पृथ्वी
रंग – गहरा लाल 
बीज मंत्र – 'लं'

इस चक्र के दूषित होने से होने वाली बीमारियां

        रीढ़ की हड्डी की बीमारियां, जोड़ों का दर्द, रक्त विकार, शरीर विकाश की समस्या, कैंसर, कब्ज, गैस, सिर दर्द, गुदा सम्बंधित रोग, यौन रोग, संतान प्राप्ति में समस्यांए, मानसिक कमजोरी जैसी बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है।

        मूलाधार चक्र जिसका भी बिगड़ा होता है वह व्यक्ति जीवन में कभी भी स्थायित्व नहीं प्राप्त कर सकता "पृथ्वी" तत्व का बिगड़ना अर्थात जीवन में संघर्ष का बढ़ना

         चक्र जगाने की विधि मनुष्य तब तक पासुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसलिए भोग, निद्रा, और सम्भोग पर सयंम रखते हुए भगवान श्री गणेश को प्रणाम कर के 'लं' मन्त्र के उच्चारण के साथ इस चक्र पर लगातार ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। इसको जागृत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

इसका प्रभाव
इस चक्र के जागृत होनेपर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जागृत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरुरी है।

स्वाधिष्ठान चक्र

Swadhisthana – त्रिक चक्र
वस्त्र चमकदार सुन्दर पिला रंग चक्र के देवता- भगवान विष्णु
चक्र की देवी – देवी राकनी ( वनस्पति की देवी ) नीले कमल की तरह
तत्व – जल
रंग – सिंदूरी, कला, सफ़ेद
बीज मंत्र – 'वं'

        द्वितीय चक्र उपस्थ में स्वाधिष्ठान चक्र के रूप में स्थित है। यह चक्र लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी छः पंखुडियो वाला कमल होता है। यह कमल छः पंखुड़ियों वाला और छः योग नाड़ियों का मिलन स्थान है। स्वाधिष्ठान चक्र के जल तत्व में मूलाधार का पृथ्वी तत्व विलीन होने से कुटुम्बी और मित्रों से सम्बन्ध बनाने में कल्पना का उदय होने लगता है। इस चक्र के कारण मन में भावना जड़ पकड़ने लगती है। यह चक्र भी अपान वायु के अधीन होता है।

         अगर आप की ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आप के जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आप का जीवन कब ब्यतीत हो जायेगा आप को पता भी नहीं चलेगा और हाँथ फिर भी खाली रह जायेंगे।

        इस चक्र से ही प्रजनन क्रिया संपन्न होती है तथा इसका सम्बन्ध सीधे चंद्रमा से होता है। मनुष्य के शरीर में तीन चौथाई भाग जल है। चन्द्र मन का कारक है यह मनुष्य की भावनाओं के वेग को प्रभावित करता है। स्त्रियों में मासिकधर्म आदि चन्द्रमा से सम्बंधित हैं। इन सभी कार्यों का नियंत्रण स्वाधिष्ठान चक्र से ही होता है। इस चक्र के द्वारा मनुष्य के आंतरिक और बाहरी संसार में समानता स्थापित करने की कोशिश रहती है। यह चक्र व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकाश करता है।

        इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - यौन रोग, प्रजनन सम्बंधित बीमारियां, मूत्र रोग, तथा शारीरिक संबंधों में अत्यधिक तीव्रता, एवं विवाहेत्तर संबंधों का कारण भी इसी चक्र के दूषित होने पे देखने में आते हैं।

       चक्र जगाने की विधि जीवन में मनोरंजन जरुरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को वेहोशी में धकेलता है । फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आप के बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते । इस चक्र पर 'वं' मन्त्र के साथ ध्यान करने से यह चक्र जागृत होने लगता है।

इसका प्रभाव
इसके जागृत होने पर क्रूरता, गर्व आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वाश आदि दुर्गुणों का नाश होता है तथा क्रिया शक्ति की प्राप्ति होती है। सिद्धयां प्राप्त करने के लिए जरुरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हों।

मणिपुर चक्र

Manipura – नाभि चक्र
चक्र के देवता- रूद्र ( मतान्तर से इंद्र, लक्ष्मी ) तीन आँखों वाले सरीर में विभूति सिंदूरी वर्ण
चक्र की देवी – लाकिनी सब का उपकार करने वाली रंग काला वस्त्र पिले हैं देवी आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं।
तत्व – अग्नि
रंग – पीला
बीज मंत्र – 'रं'

       यह चक्र नाभि मूल, नाभि से थोड़ा ऊपर स्थित होता है। यह स्थल शरीर का केंद्र है, जहाँ से ऊर्जा का वितरण होता है। यह नाभि केंद्र के पास और रीढ़ की हड्डी के भीतर स्थित होता है। इसकी स्थिति मेरुदंड के भीतर समझनी चाहिए। यह अग्नि तत्व प्रधान चक्र है। जो नीलवर्ण वाले दस दलों के एक कमल के सामान है तथा मणि के सामान चमकने वाला है। मणिपुर चक्र के प्रत्येक दल पर बीजाक्षर हैं चक्र के मध्य में उगते सूर्य की प्रभा के सामान तेजस्वी त्रिकोण रूप अग्नि छेत्र है जिनकी तीन भुजाओं पर स्वस्तिक है।

        जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहाँ एकत्रित है उसे काम करने की धुन सी सवार रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनियां का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - पाचन संबंधी रोग, पेस्टिक अल्सर, मधुमेह, रक्तशर्करा अल्पता, कब्ज, आंत्र-कृस्मृतिदोष, घबराहट आदि बीमारियां प्रकट होती हैं।

       चक्र जगाने की विधि आप के कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए अग्नि मुद्रा में बैठें अनामिका ऊँगली को मोड़कर अंगुष्ठ के मूल में लगाएं अब इस चक्र पर ध्यान लगाएं। पेट से स्वास लें ।

इसका प्रभाव
       इसके सक्रीय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान का होना बहोत जरुरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरुरी है कि आप शरीर नहीं आत्मा हैं। आत्मशक्ति, आत्मबल, और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं ।

अनाहत चक्र

Anahata – ह्रदय चक्र
चक्र के देवता- ईश् श्री जगदम्बा ( शिव-शक्ति)
चक्र की देवी – काकनी सर्वजन हितकारी देवी का रंग पीला है, तीन आँखे हैं चार हाँथ हैं।
तत्व – वायु
रंग – हरा, नीला, चमकदार, किरमिजी
बीज मंत्र – 'यं'

       अनाहत का अर्थ है जिसे घायल नहीं किया जा सके यह चक्र व्यक्ति के ह्रदय में स्थित होता है। इस चक्र में ' श्वेत रंग का कमल होता है जिसमे बारह पंखुरियाँ होती हैं। इस स्थान पर बारह नाड़ियाँ मिलती हैं। अनाहद चक्र में बारह ध्वनियां निकलती हैं। यह प्राण वायु का स्थान है। तथा यहीं से वायु नासिक द्वारा अंदर व् बाहर होती रहती है। प्राण वायु शरीर की मुख्य क्रिया का संपादन करता है जैसे वायु को सभी अंगों में पहुँचाना, अन्न-जल को पचाना, उसका रस बनाकर सभी अंगों में प्रवाहित करना, वीर्य बनाना, पसीने व् मूत्र के द्वारा पानी को बहार निकलना प्राणवायु का कार्य है। यह चक्र ह्रदय समेत नाक के ऊपरी भाग में मौजूद है तथा ऊपर की इंद्रियों का काम उसके अधीन है।

       अगर आप की ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होगें, हर क्षण आप कुछ न कुछ नया करने की सोचते रहते हैं, आप कहानीकार, चित्रकार, कवि, इंजिनियर आदि हो सकते हैं।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बिमारियों की सम्भावना होती है| ह्रदय एवं श्वास रोग, स्तन कैंसर, छाती में दर्द, उच्च रक्तचाप, रक्षाप्रणाली विकार आदि

       चक्र जगाने की विधि ह्रदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जागृत होने लगता है और शुष्मना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

इसका प्रभाव
       इसके जागृत होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। तथा प्रेम और संवेदना मन में जाग्रत होती हैं तथा मन की इच्छा पूर्ण होती है। ज्ञान स्वतः ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक, रूप से जिम्मेदार, एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता है। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैसी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

विशुद्ध चक्र

Visuddha – कंठ चक्र
देवता- सदाशिव रंग सफेद, तीन आँखे, पञ्च मुख, दस भुजाएं
चक्र की देवी – सकिनी वस्त्र पिले चन्द्रमां के सागर से भी पवित्र तत्व
तत्व – आकाश
रंग – बैगनी
बीज मंत्र – 'हं'

       विशुद्धि चक्र कंठ में स्थित है जहाँ सरस्वती का स्थान है। यह चक्र बहोत ही महत्वपूर्ण होता है। यह जागृत होते ही व्यक्ति को वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है, माता सरस्वती की कृपा होती है, आयु की वृद्धि होती है, संगीत विद्या की सिद्धि प्राप्त होती है, शब्द का ज्ञान होता है व्यक्ति विद्वान होता है। यह चक्र अपने अनुभवों के बारे में बोलने की तीव्र इच्छा शक्ति प्रदान करता है। यह चक्र श्रवण का भी केंद्र है और मनुष्य के सुनने की शक्ति इतनी विकसित कर देता है कि वह कानो से ही नहीं मन से भी सुनने लगता है।

       यह सोलह पंखुडियों वाला कमल का फूल प्रतीत होता है क्योंकि यहाँ 16 नाड़ियाँ आपस में मिलती हैं । इनके मिलने से कमल की आकृति बनती है इस चक्र में 'अ' से 'अः' तक सोलह ध्वनियां निकलती हैं। इस चक्र का ध्यान करने से दिव्य दृष्टि, दिव्य ज्ञान, तथा समाज के लिए कल्याणकारी भावना पैदा होती है।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां होने की सम्भावना होती हैं| थायरॉयड विकार, जुकाम और ज्वर, संक्रमण, मुंह, जबड़ा, जिह्वा, कन्धा, और गर्दन सम्बन्धी रोग, उग्रता, हार्मोनल विकार, मनोदशा विकार, रजोनिवृत्ति जनित रोग, आदि रोग होने की प्रबल सम्भावना होती है।

       चक्र जगाने की विधि कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जागृत होने लगता है। और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर की ओर उठने लगती है।

इसका प्रभाव
इसके जागृत होने पर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जगृत होने से व्यक्ति अपने व्यवहार में अत्यन्त सत्यनिष्ठ, कुशल और मधुर हो जाता है और व्यर्थ के तर्क-वितर्क में नहीं फंसता, बिना अहम् को बढ़ावा दिए परिस्थितियों पर नियंत्रण करने में वह अत्यन्त युक्ति कुशल हो जाता है।

अजना चक्र

Ajna – आज्ञा चक्र
तत्व – मन का तत्व ( अनुपद तत्व )
रंग – सफेद
बीज मंत्र – 'ॐ '

यह चक्र मस्तक के मध्य में भौहों के बीच स्थित है। इसी लिए इसे तीसरा नेत्र भी कहते हैं। आज्ञा चक्र स्पष्टता और बुद्धि का केंद्र है। यह मानव और दैवी चेतना के मध्य सीमा निर्धारित करता है। यह प्रमुख तीन नाड़ियों

इड़ा - चन्द्र नाड़ीपिंगला - सूर्य नाड़ीसुषुम्ना - केंद्रीय, मध्य नाड़ी

के मिलन का स्थान है। जब तीनो नाडियों की ऊर्जा यहाँ मिलती है और आगे उठती है, तब समाधी प्राप्त होती है, सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है। व्यक्ति अलौकिक हो जाता है। बौद्धिक रूप से सम्पन्नता प्राप्त होती है।

आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुड़ियों वाला एक कमल है जो इस बात का द्योतक है कि चेतना के इस स्तर पर ' केवल दो' आत्मा और परमात्मा( स्व और ईश्वर ) ही हैं। आज्ञा चक्र आंतरिक गुरु का पीठ (स्थान) है। यह द्योतक है बुद्धि और ज्ञान का, जो सभी कार्यों में अनुभव किया जा सकता है। सामान्य तौर पर कहा जाये तो जिस व्यक्ति ऊर्जा यहाँ ज्यादा सक्रिय है तो वह व्यक्ति बहोत तेज दिमांक का बन जाता है।

इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना होती है| आधा सीसी का दर्द, मतिभ्रम, जुकाम और ज्वर, हार्मोनल विकार, मनोदशा विकार, आँखं, माथा, सम्बंधित रोग होने के प्रबल सम्भावना होती है।

चक्र जगाने की विधि भृकुटि के मध्य ( भौहों के बीच ) ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

इसका प्रभाव
यहाँ अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं। और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

सहस्रार चक्र

Sahasrara – शीर्ष चक्र (मुकुट केंद्र)
भगवान – शंकर तत्व – सर्व तत्व ( आत्म तत्व )
रंग – बैंगनी
बीज मंत्र – 'ॐ' 
सहस्रार = हजार , असंख्य, अनंत

       सहस्रार चक्र सिर के शिखर पर स्थित है। इसे "ब्रह्म रन्ध्र" ( ईश्वर का दरबार ) या "लक्ष किरणों का केंद्र" भी कहा जाता है। ऊपर से देखने देखने पर इसमें कुल 972 पंखुड़ियां दिखाई देती है। इसमें नीचे 960 छोटी-छोटी पंखुड़ियाँ और उनके ऊपर मध्य में 12 सुनहरी पंखुड़ियाँ सुशोभित रहती है। इसे हजार पंखुड़ियों वाला कमल कहते हैं।इसका चिन्ह खुला हुआ कमल का फूल है जो असीम आनन्द का केंद्र होता है। इस में इंद्रधनुष के सारे रंग दिखाई देते हैं। लेकिन प्रमुख रंग बैगनी होता है। इस चक्र में 'अ' से 'क्ष' तक की सभी स्वर और वर्ण ध्वनि उत्पन्न होती है। पिट्यूटीऔर पीनियल ग्रंथि का आंशिक भाग इसमें संबंधित है। यह मस्तिष्क का ऊपरी हिस्सा और दाईं आंख को नियंत्रित करता है। यह आत्मज्ञान, आत्म दर्शन, एकीकरण, स्वर्गीय अनुभूति के विकास का मनोवैज्ञानिक केंद्र है। सहस्रार को कैलास पर्वत के रूप में इंगित करने तथा भगवान शंकर के तप रत होने की स्थिति भी योगी जन कहते हैं।

       योग शास्त्रों के अनुसार सहस्रबाहो दोनों कनपटियों से दो-दो इंच अंदर और भौहों से भी लगभग तीन-तीन इंच अंदर मस्तिष्क मध्य में महावीर नामक महारुद्र के ऊपर छोटे से पोले भाग में ज्योतिपुंज के रूप में अवस्थित है। तत्वदर्शी यों के अनुसार यह उलटे छोटे या कटोरे के समान दिखाई देता है। छान्दोग्य-उपनिषद में सहस्रार दर्शन की सिद्धि का वर्णन करते हुए कहा गया है - "तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचोर भवति"

       अर्थात सहस्रार को जागृत कर लेने वाला व्यक्ति संपूर्ण भौतिक विज्ञान की सिद्धियां हस्तगत कर लेता है। यही वह शक्ति केंद्र है जहां से मस्तिष्क शरीर का नियंत्रण करता है। और विश्व में जो कुछ भी मानव-हित के लिए विलक्षण विज्ञान दिखाई देता है उस का संपादन करता है। इसे ही दिव्य दृष्टि का स्थान कहते है। मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक सभी चक्रों के जागरण की कुंजी सहस्रार चक्र के पास ही है। कह सकते हैं कि सारे चक्रों का यही मास्टर स्विच है।

       इस चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियां - इस चक्र के दूषित होने पर शरीर में निम्न बीमारियां उत्पन्न होने की सम्भावना होती है| सिरदर्द, मानसिक रोग, नाडीशूल, मिर्गी, मस्तिष्क रोग, एल्झाइमर, त्वचा में चकत्ते आदि रोग होने की प्रबल सम्भवना होती है।

       चक्र जगाने की विधि यह वास्तव में चक्र नहीं है बल्कि साक्षात तथा संपूर्ण परमात्मा और आत्मा है। जो व्यक्ति सहस्रार चक्र का जागरण करने में सफल हो जाते हैं, वे जीवन मृत्यु पर नियंत्रण कर लेते हैं सभी लोगों में अंतिम दो चक्र सोई हुई अवस्था में रहते हैं। अतः इस चक्र का जागरण सभी के बस में नहीं होता है। इसके लिए कठिन साधना व लंबे समय तक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसका मन्त्र 'ॐ' है।

इसका प्रभाव
       शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण विद्युतीय और जैवीय विद्युत् का संग्रह है। यही मोक्ष का द्वार है।
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Thursday, May 18, 2017

Rani Ki Vav , Patan રાણકી વાવ

          रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण में स्थित प्रसिद्ध बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) है। 22 जून 2014 को इसे यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में सम्मिलित किया गया।
पाटण को पहले 'अन्हिलपुर' के नाम से जाना जाता था, जो गुजरात की पूर्व राजधानी थी। कहते हैं कि रानी की वाव (बावड़ी) वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव प्रथम की प्रेमिल स्‍मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति ने बनवाया था। राजा भीमदेव ही सोलंकी राजवंश के संस्‍थापक थे। सीढ़ी युक्‍त बावड़ी में कभी सरस्वती नदी के जल के कारण गाद भर गया था। 
          यह वाव 64 मीटर लंबा, 20 मीटर चौड़ा तथा 27 मीटर गहरा है। यह भारत में अपनी तरह का अनूठा वाव है। वाव के खंभे सोलंकी वंश और उनके वास्तुकला के चमत्कार के समय में ले जाते हैं। वाव की दीवारों और स्तंभों पर अधिकांश नक्काशियां, राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि, आदि जैसे अवतारों के विभिन्न रूपों में भगवान विष्णु को समर्पित हैं।
           'रानी की वाव' को विश्व विरासत की नई सूची में शामिल किए जाने का औपचारिक ऐलान कर दिया गया है। 11वीं सदी में निर्मित इस वाव को यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने भारत में स्थित सभी बावड़ी या वाव (स्टेपवेल) की रानी का भी खिताब दिया है। इसे जल प्रबंधन प्रणाली में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का बेहतरीन उदाहरण माना है। 11वीं सदी का भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना का अनूठे प्रकार का सबसे विकसित एवं व्यापक उदाहरण है यह, जो भारत में वाव निर्माण के विकास की गाथा दर्शाता है। सात मंजिला यह वाव मारू-गुर्जर शैली का साक्ष्य है। ये करीब सात शताब्दी तक सरस्वती नदी के लापता होने के बाद गाद में दबी हुई थी । इसे भारतीय पुरातत्व सर्वे ने वापस खोजा।

Ranik ki vav
Rani ki vav 

રાણકી વાવ
રાણી ની વાવ

Rani ki vav
રાણકી વાવ 

રાણકી વાવ
રાણકી વાવ 

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Wednesday, April 26, 2017

How to get Vitamin B12 ?

शाकाहारी तरीके से घर पर विटामिन B-12 बनाने की विधि

B¹²


➡एक कटोरी पके हुए चावल लै (Take a bowl of cooked or boiled rice).
➡ चावलों को ठंडा होने दें।
➡ ठंडा होने पर इन चावलों को एक कटोरी दही में अच्छी तरह mix कर दें।
➡ इन mix किये चावलों को रात भर या कम से कम 3-4 घण्टों के लिए fridge में या किसी ठंडी जगह पर रख दें।
➡ बस प्रचुर मात्रा में विटामिन B-12 युक्त 'Fermented Curd-Rice ' खाने के लिए तैयार हैं।
➡ Fermentation की वजह से Vitamin B-12 के अलावा इसमें अन्य B-Complex विटामिन भी पैदा हो जाते हैं।
➡ दही में Lactobacillus नामक Bacteria मौजूद होता है। यह हमारा मित्र bacteria है। यह bacteria जब चावलों के ऊपर action करता है तो B-Complex vitamins पैदा होते हैं और इस विधी को Fermentation कहते हैं।
➡ इन fermented Curd-Rice को और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए इनमें इमली की चटनी मिला कर भी खा सकते हैं। चटनी मिलाने पर यह इतने अधिक स्वादिष्ट हो जाते हैं कि बच्चे भी इन्हें दही -भल्लों की चाट की तरह बड़े चाव से खाते खा जाते हैं।
➡ इस विधी से बने Fermented food को pre- digested food भी कहते हैं क्योंकि friendly bacteria के action से यह आधे हजम तो पहले ही हो जाते हैं।
➡ यह इतने अधिक सुपाच्य होते हैं कि जिसको कुछ भी हजम न होता हो उसे भी हजम हो जाते हैं।
➡ पेट की लगभग हर बिमारी का रामबाण इलाज हैं fermented Curd-Rice.
➡ जिन्हें कुछ भी हजम न होता हो या जिनमें विटामिन B-12 की बहुत अधिक कमी हो वह प्रतिदिन तीनों समय भी इन्हें खा सकते हैं। एक महीने में ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे।
➡ दही में चावल की बजाये रोटी से भी Fermentation कर सकते हैं। बस चावल की बजाये दही में रोटी डालकर fridge में कम से कम 3-4 घंटों के लिए रखना है , बाकी विधी वही है।
🍁राजीव जैन 
      अध्यक्ष 
बाल सेवा समिति भीलवाड़ा
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Sunday, April 23, 2017

ALSI

*अलसी(जवस) एक  चमत्कारी औषधी*
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विविध नाम :-
अलसी, फ्लेक्स सीड्स, लिन सिड्स वगैरा उसके नाम हैं।

💥 दोस्तो अलसी से सभी 
 परिचित होंगे लेकिन उसके चमत्कारी फायदे से बहुत ही कम लोग जानते हैं।
💥 मै डाक्टर वंदना चौहानआज अलसी के फायदे जो बता रही हूॅ उनसे आप जरुर रोग मुक्त हो जायेगें।

☘ अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं।

💥  अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह रोगियों के लिए आदर्श आहार है।

💥 *ब्लड शुगर* 💥
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☘ अगर किसीको ब्लड शुगर, (डायाबिटिज) की तकलीफ है तो आपके लिये अलसी किसी वरदान से कम नहीं है।

👉 सुबह खाली पेट २ चमच अलसी लेकर, २ ग्लास पानी मे उबालै जब आधा पानी बचे तब छानकर पियें।

☘ *थाईराईड*  ☘
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👉 सुबह खाली पेट २ चमच अलसी लेकर २ ग्लास पानी में उबालै जब आधा पानी बचे तब छानकर पियें।

👉 यह दोनो प्रकार के थाईराईड मे बढिया काम करती है।

☘ *हार्ट ब्लोकेज* ☘
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👉 ३ महिना अलसी का काढा उपर बताई गई विधि के अनुसार करने से आपको ऐन्जियोप्लास्टि कराने की जरुरत नहीं पडती।

☘ *लकवा, पैरालिसीस* ☘
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👉 पेरालिसीस होने पर ऊपर बताई गई विधि से काढा पीने से लकवा ठीक हो जाता है।

☘ बालों का गिरना ☘
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👉 अलसी को आधा चमच रोज सुबह खाली पेट सेवन करने से बाल गिरने बंद हो जाते हैं।

   ☘ *जोडो का ददँ* ☘
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अलसी का काढा पीने से जोडो का दर्द दूर हो जाता है। साईटिका, नस का दबना वगैरा मे लाभकारी।

☘ *अतिरिक्त वजन*  ☘
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👉 अलसी का काढा पीने से शरीर का अतिरिक्त मेद दूर होता है।  नित़्य इसका सेवन करें, निरोगी रहे।

☘ *केन्सर* ☘
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👉 किसी भी प्रकार के केन्सर मे अलसी का काढा सुबह शाम दो बार पिऐ जिससे असाधारण लाभ निश्चीत है।

☘ *पेट की समस्या*☘
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👉 जिन लोगों को बार बार पेट के जुडे रोग होते हैं उनके लिये अलसी रामबाण ईलाज है। अलसी कब्ज, पेट का दर्द आदि में फायदाकारक है।

☘ *बालों का सफेद होना* ☘
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👉 १ व्यक्ति ने मुझे बताया कि उसने मेरे बताने के अनुसार ३ महिने अलसी का काढा पीया तो उसके सफेद बाल भी धीरे धीरे काले होने लगे।

☘ *सुस्ति, आलस, कमजोरी* ☘
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👉 अलसी का काढा पीने से सुस्ती, थकान, कमजोरी दूर होती है।

☘ *किसी भी प्रकार की गांठ* ☘
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👉 सुबह शाम दो समय अलसी का काढा बनाकर पीने से शरीर में होने वाली किसी भी प्रकार की गांठ ठीक हो जाती है।

☘ *श्वास - दमा कफ, ऐलजीँ* ☘
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👉 अलसी का काढा रोज सुबह शाम २ बार लेने से श्वास, दमा, कफ, ऐलजीँ के रोग ठीक हो जाते हैं।

☘ *ह्दय की कमजोरी* ☘
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👉 ह्दय से जुड़ी किसी भी समस़्या मे अलसी का काढा रामबाण ईलाज है।

👉 जिन लोगों को ऊपर बताई गई समस़्या में से १ भी तकलीफ है तो आपके पास ईसका रामबाण ईलाज के रुप में अलसी का काढा है। क्रपया आप इसका सेवन करें आैर स्वस्थ रहें।


🍀 कैसे बनायें काढा 🍀
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👉 २ चमच अलसी + 3 ग्लास पानी मिक्स करके उबालें। जब अाधा पानी बचे तब छानकर पियें।


🍀 इस प्रयोग से असंख्य लोगों को बहुत ही लाभ मिला है 🍀 

 अलसी म्हणजे जवस
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Saturday, April 15, 2017

होश चाबी है

🇹🇿 *होश मास्टर चाबी है!*🇹🇿

होश की चाबी ऐसी चाबी है। तुम चाहे काम पर लगाओ तो काम को खोल देती है क्रोध पर लगाओ क्रोध को खोल देती है लोभ पर लगाओ लोभ को खोल देती है; मोह पर लगाओ, मोह को खोल देती है। तालों की फिकर ही नहीं है—मास्टर की है। कोई भी ताला इसके सामने टिकता ही नहीं। वस्तुत: तो ताले में चाबी डल ही नहीं पाती, तुम चाबी पास लाओ और ताला खुला।
यह चमत्कारी सूत्र है। इससे महान कोई सूत्र नहीं। इससे तुम बचते हो और बाकी तुम सब तरकीबें करते हो, जो कोई भी काम में आने वाली नहीं हैं। तुम्हारी नाव में हजार छेद हैं। एक छेद बंद करते हो तब तक दूसरे छेदों से पानी भर रहा है। तुम क्रोध से जूझते हो, तब तक काम पैदा हो रहा है।

सूत्र हैं, कर्म के प्रति जागो। पहला सूत्र। जब कर्म के प्रति होश सध जाए तो फिर जागो कर्ता के प्रति। होश के दीए को जरा भीतर मोड़ो। जब कर्ता के प्रति दीया साफ—साफ रोशनी देने लगे, तो अब उसके प्रति जागो जो जागा हुआ है—साक्षी के प्रति। अब जागरण के प्रति जागो। अब चैतन्य के प्रति जागो। वही तुम्हें परमात्मा तक ले चलेगा।

ऐसा समझो, साधारण आदमी सोया हुआ है। साधक संसार के प्रति जागता है, कर्म के प्रति जागता है। अभी भी बाहर है, लेकिन अब जागा हुआ बाहर है। साधारण आदमी सोया हुआ बाहर है। धर्म की यात्रा पर चल पड़ा व्यक्ति बाहर है, लेकिन जागा हुआ बाहर है।
फिर जागने की इसी प्रक्रिया को अपनी तरफ मोड़ता है। एक दफे जागने की कला आ गयी, कर्म के प्रति, उसी को आदमी कर्ता की तरफ मोड़ देता है। हाथ में रोशनी हो, तो कितनी देर लगती है अपने चेहरे की तरफ मोड़ देने में! बैटरी हाथ में है, मत देखो दरख्त, मत देखो मकान, मोड़ दो अपने चेहरे की तरफ! हाथ में बैटरी होनी चाहिए, रोशनी होनी चाहिए। फिर अपना चेहरा दिखायी पड़ने लगा।
साधारण व्यक्ति संसार में सोया हुआ है; साधक संसार में जागा हुआ है; सिद्ध भीतर की तरफ मुड़ गया, अंतर्मुखी हो गया, अपने प्रति जागा हुआ है। अब बाहर नहीं है, अब भीतर है और जागा हुआ है। और महासिद्ध, जिसको बुद्ध ने महापरिनिर्वाण कहा है, वह जागने के प्रति भी जाग गया। अब न बाहर है न भीतर, बाहर—भीतर का फासला भी गया। जागरण की प्रक्रिया दोनों के पार है।

          🌼 *ओशो*🌼
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Sunday, April 9, 2017

क्रोध के दो मिनट

*😡क्रोध के दो मिनट😡*
एक युवक ने विवाह के दो साल बाद
परदेस जाकर व्यापार करने की
इच्छा पिता से कही ।
पिता ने स्वीकृति दी तो वह अपनी गर्भवती
पत्नी को माँ-बाप के जिम्मे छोड़कर व्यापार
करने चला गया ।
परदेश में मेहनत से बहुत धन कमाया और
वह धनी सेठ बन गया ।
सत्रह वर्ष धन कमाने में बीत गए तो सन्तुष्टि हुई
और वापस घर लौटने की इच्छा हुई ।
पत्नी को पत्र लिखकर आने की सूचना दी
और जहाज में बैठ गया ।
उसे जहाज में एक व्यक्ति मिला जो दुखी
मन से बैठा था ।
सेठ ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो
उसने बताया कि
इस देश में ज्ञान की कोई कद्र नही है ।
मैं यहाँ ज्ञान के सूत्र बेचने आया था पर
कोई लेने को तैयार नहीं है ।
सेठ ने सोचा 'इस देश में मैने बहुत धन कमाया है,
और यह मेरी कर्मभूमि है,
इसका मान रखना चाहिए !'
उसने ज्ञान के सूत्र खरीदने की इच्छा जताई ।
उस व्यक्ति ने कहा-
मेरे हर ज्ञान सूत्र की कीमत 500 स्वर्ण मुद्राएं है ।
सेठ को सौदा तो महंगा लग रहा था..
लेकिन कर्मभूमि का मान रखने के लिए
500 स्वर्ण मुद्राएं दे दी ।
व्यक्ति ने ज्ञान का पहला सूत्र दिया-
कोई भी कार्य करने से पहले दो मिनट
रूककर सोच लेना ।
सेठ ने सूत्र अपनी किताब में लिख लिया ।

कई दिनों की यात्रा के बाद रात्रि के समय
सेठ अपने नगर को पहुँचा ।
उसने सोचा इतने सालों बाद घर लौटा हूँ तो
क्यों न चुपके से बिना खबर दिए सीधे
पत्नी के पास पहुँच कर उसे आश्चर्य उपहार दूँ ।

घर के द्वारपालों को मौन रहने का इशारा
करके सीधे अपने पत्नी के कक्ष में गया
तो वहाँ का नजारा देखकर उसके पांवों के
नीचे की जमीन खिसक गई ।
पलंग पर उसकी पत्नी के पास एक
युवक सोया हुआ था ।

अत्यंत क्रोध में सोचने लगा कि
मैं परदेस में भी इसकी चिंता करता रहा और
ये यहां अन्य पुरुष के साथ है ।
दोनों को जिन्दा नही छोड़ूगाँ ।
क्रोध में तलवार निकाल ली ।

वार करने ही जा रहा था कि उतने में ही
उसे 500 स्वर्ण मुद्राओं से प्राप्त ज्ञान सूत्र
याद आया-
कि कोई भी कार्य करने से
पहले दो मिनट सोच लेना ।
सोचने के लिए रूका ।
तलवार पीछे खींची तो एक बर्तन से टकरा गई ।

बर्तन गिरा तो पत्नी की नींद खुल गई ।
जैसे ही उसकी नजर अपने पति पर पड़ी
वह ख़ुश हो गई और बोली-
आपके बिना जीवन सूना सूना था ।
इन्तजार में इतने वर्ष कैसे निकाले
यह मैं ही जानती हूँ ।

सेठ तो पलंग पर सोए पुरुष को
देखकर कुपित था ।
पत्नी ने युवक को उठाने के लिए कहा- बेटा जाग ।
तेरे पिता आए हैं ।
युवक उठकर जैसे ही पिता को प्रणाम
करने झुका माथे की पगड़ी गिर गई ।
उसके लम्बे बाल बिखर गए ।

सेठ की पत्नी ने कहा- स्वामी ये आपकी बेटी है ।
पिता के बिना इसके मान को कोई आंच न आए
इसलिए मैंने इसे बचपन से ही पुत्र के समान ही
पालन पोषण और संस्कार दिए हैं ।

यह सुनकर सेठ की आँखों से
अश्रुधारा बह निकली ।
पत्नी और बेटी को गले लगाकर
सोचने लगा कि यदि
आज मैने उस ज्ञानसूत्र को नहीं अपनाया होता
तो जल्दबाजी में कितना अनर्थ हो जाता ।
मेरे ही हाथों मेरा निर्दोष परिवार खत्म हो जाता ।

ज्ञान का यह सूत्र उस दिन तो मुझे महंगा
लग रहा था लेकिन ऐसे सूत्र के लिए तो
500 स्वर्ण मुद्राएं बहुत कम हैं ।
'ज्ञान तो अनमोल है '

इस कहानी का सार यह है कि
जीवन के दो मिनट जो दुःखों से बचाकर
सुख की बरसात कर सकते हैं ।
वे हैं - *'क्रोध के दो मिनट'*

इस कहानी को शेयर जरूर  करें 
क्योंकि आपका एक शेयर किसी व्यक्ति को उसके क्रोध पर अंकुश रखने के लिए 
प्रेरित कर सकता है ।
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Wednesday, April 5, 2017

મોબાઈલ ફોનને લગતી સામાન્ય શિસ્ત

મોબાઈલ ફોનને લગતી સામાન્ય શિસ્ત :-

૧. રીંગટોન પોતાને સંભળાય એટલો જ રાખવો.
૨. જાહેર માં જોરશોર થી મોબાઈલ પર વાતો ન કરવી.
૩. કોઈ શ્રધાંજલિ સભામાં ગયા હોઈએ તો થોડી વાર માટે મોબાઈલ ને સાઈલેંટ કે બંધ કરી શકાય છે.
૪. તમારું જીવન માત્ર તમારું જ નહિ, પરિવાર નું, સમાજ નું તથા રાષ્ટ્ર નું છે. વાહન ચલાવતી વખતે મોબાઈલનો ઉપયોગ કરી જીવનને જોખમ ઉભું ના કરો. જાહેર રસ્તે ચાલતા ચાલતા મોબાઈલ પરથી વાતો ન કરો.
૫. હોસ્પિટલ્સ માં મોબાઈલનો ઉપયોગ ટાળવો.
૬. અગત્યની કોઈ મીટીંગ હોય કે પરિવારના સૌ ભેગા થયા હોય ત્યારે મોબાઈલ થી રમવા ની જગ્યાએ સર્વ વડીલોથી, સંબંધીઓથી વાતચીત કરો.
૭. વધુ પડતું ચેટીંગ ના કરો, આખરે તમ્રે જરૂર પડશે તો પરિવાર તેમજ અમુક ખાસ મિત્રો જ કામે આવશે.

* આમાં બીજા સૂચનો પણ ઉમેરી શકાય.
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Saturday, April 1, 2017

वृक्षों की उपयोगिता

वृक्षों की उपयोगिता
पाठकों, ये तो आप सभी जानते हो कि वृक्ष हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी होता है। जहाँ वृक्ष होते हैँ वहाँ का प्राकृतिक वातावरण अलग ही होता है। वृक्ष होने पर वातावरण शुद्ध होता है। ये हमारे द्वारा छोङी गई कार्बन-डाई-ऑक्साईड गैस को ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन गैस छोङते हैं। सोचो, अगर वृक्ष ना हो तो हमारे द्वारा छोङी गई कार्बन-डाई-ऑक्साईड को कौन ग्रहण करेगा? पूरे वातावरण में जब कार्बन-डाइ-ऑक्साइड फैल जाएगी तो हमारे लिए सांस लेना मुश्किल हो जाएगा और हम मर जाएँगे। मानसून भी वृक्षों पर ही निर्भर करता है। जहाँ ज्यादा मात्रा में वृक्ष होते हैं वहाँ बरसात भी ज्यादा होती है और जहाँ कम मात्रा मेँ वृक्ष होते हैं वहाँ बरसात भी कम होती है। वृक्षों से बहुत सी जीवनोपयोगी वस्तुएँ मिलती हैं, जैसे – इमारती लकङी, जलावन, चारा, फर्निचर, फल, औषधि, छाया आदि। वृक्षों से ही पर्यावरण का निर्माण होता है। पहले हर गाँव के आस पास जंगल होता था और उसी जंगल को बचाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पङती है। जिनके कंधों के ऊपर जंगलों को बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है वे ही जँगलों को कटवाने में सहायक हो रहे हैँ।
जंगलों की कटाई करके वहाँ उद्योग धन्धे लगाये जा रहे हैं, खदानें खोदी जा रही हैं, रेलमार्ग व सङक मार्ग विकसित किए जा रहे हैं। ज्यादा खेती योग्य भूमि बनाने के लिए वृक्षों की कटाई की जा रही है। जलावन व फर्निचर के लिए अन्धाधुंध वृक्ष काटे जा रहे हैं लेकिन उनके बदले कोई भी एक वृक्ष लगाने को तैयार नहीं है। किसी को मारना बहुत आसान होता है पर किसी पालना बहुत मुश्किल होता है, इसीलिए लोग वृक्षों को काट तो लेते हैं पर उसकी जगह एक वृक्ष लगा नहीं सकते।
आज शहरों में जिस तरह से निर्माण कार्य चल रहा है उससे प्रकृति को नुकसान ही हो रहा है। आधुनिक विकास की नींव प्रकृति के विनाश पर ही रखी जाती है। बङी-बङी इमारतें बनाने के लिए खेती की जमीन का इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे वहाँ खङे पेङ-पौधे भी काटे जा रहे हैं।
अब शहरों में लोग अपने-अपने घरों में गमलों में छोटे पौधे लगा रहे हैं। लेकिन इन छोटे पौधों से क्या होता है। छोटे पौधे सिर्फ सजावट कर सकते हैं पर आपके स्वास्थ्य की रक्षा नहीं कर सकते। आज आम शहरियों में बङी बङी बिमारियाँ घर कर गई हैं जो पर्यावरणीय नुकसान के कारण ही है। जब हमें स्वच्छ प्राण वायु नहीं मिलेगी तो बिमारी तो लगेगी ही।
बरसों पहले राजस्थान के खेजङली गाँव में पेङों को ठेकेदारों से बचाने के लिए गाँव वालों नें पेङों के साथ लिपटकर अपनी कुर्बानी दी थी। आज सिर्फ वही विश्नोई समाज पेङों के संरक्षण की बात करता है, बाकि को इससे कोई मतलब नहीं है। पेङ कटे या बचे पर उनका विकास होना चाहिए।
हमारे प्राचीन मनीषियों नें भी पेङों के संरक्षण की पुरजोर वकालत की है। हमारे प्राचीन विद्वान इस बात को जानते थे कि वृक्षों के बिना जीवन संभव नहीं है। तभी तो उन्होंने हमारे जीवन में हर व्रत या पर्वों को वृक्षों से जोङा है।
वृक्ष के महत्त्व को बताते हुए मत्स्यमहापुराण में एक कथा आती है। जब शिव-पार्वती का विवाह हुआ था तब बहुत दिनों तक शिव-पार्वती का समागम नहीं होने के कारण पार्वती जी को कोई सन्तान नहीं हुई। इस कारण माता पार्वती तरह-तरह के बच्चों के खिलौने बनाकर खेला करती थी। पहले उन्होंने गजमुख की आकृति वाले बच्चे का निर्माण अपने शरीर के मैल से किया। फिर इसमें प्राण डालकर ब्रह्मा जी नें इसे गजानन या गणेश का नाम दिया। फिर उन्होंने वृक्ष के पत्तों को पीसकर उसका एक खिलोना बनाकर उससे खेलने लगी तो ब्रह्म ऋषियों नें आकर कहा कि-'हे माता! आप ये कर रही हैं? आपको तारकासुर का वध करने के लिए बलशाली बच्चा उत्पन्न करना था और आप यहाँ खिलौने बनाकर खेल रही हैं।'
तब पार्वती जी नें उनसे कहा कि –

एवं निरुदके देशे यः कूपं कारयेद् बुधः।
बिन्दौ बिन्दौ च तोयस्य वसेत् संवत्सरं दिवि।। (511)
दशकूपसमा वापी दशवापीसमो ह्रदः।
दशह्रदसमः पुत्रो दशपुत्रो समो द्रुमः।।
एषैव मम् मर्यादा नियता लोक भावनी।। (512)

अर्थात् – 'हे विप्रवरों। इस प्रकार के जल रहित प्रदेश (कैलाश) में जो बुद्धिमान पुरुष कुआँ बनवाता है, वह कुएँ के जल के एक-एक बूँद के बराबर वर्षों तक निवास करता है। इस प्रकार दस कुएँ के समान एक बावङी, दस बावङी के सदृश एक सरोवर, दस सरोवर की तुलना में एक पुत्र और दस पुत्रों की तुलना में एक वृक्ष माना गया है। यही लोकों का कल्याण करने वाली मर्यादा है, जिसे मैं निर्धारित कर रही हूँ। (मत्स्यपुराण-अध्याय 152, श्लोक 511 व 512)

इस प्रकार एक वृक्ष को दस पुत्रों के समान बताया गया है। यानि जितना पुण्य दस पुत्रों को उत्पन्न करने पर होता है उतना ही पुण्य एक वृक्ष लगाने पर होता है। 
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Wednesday, March 29, 2017

खाना खाएं भी और पचाये भी

खाना खाएं भी और पचाये भी
डॉ. कोमल अग्रवाल


हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद.!
क्या कारण है.?
हमने दाल खाई,
हमने सब्जी खाई, 
हमने रोटी खाई,
हमने दही खाया,
लस्सी पी, दूध, दही, छाछ, लस्सी, फल आदि.!
ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया
ये सब कुछ हमको उर्जा देता है
और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है.!
पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है
जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय"
उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर"
उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है
"epigastrium"
ये एक थैली की तरह होता है
और यह जठर
हमारे शरीर मे सबसे
महत्वपूर्ण है
क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है।
ये बहुत छोटा सा स्थान हैं
इसमें अधिक से अधिक 350gms खाना आ सकता है.!
हम कुछ भी खाते
सब ये अमाशय मे आ जाता है.!

आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है

उसी को कहते हे "जठराग्नि".!
ये जठराग्नि है
वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है ।
ऐसे ही पेट मे होता है
जेसे ही आपने खाना खाया
की जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी..
यह ऑटोमेटिक है,
जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला
की इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई.!
ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना' पचता है |

अब अपने खाते ही
गटागट पानी पी लिया
और खूब ठंडा पानी पी लिया.

और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है.!

अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी
वो बुझ गयी.!
आग अगर बुझ गयी
.तो खाने की पचने की जो क्रिया है
वो रुक गयी.!
You suffer from IBS,
Never CURABLE

अब हमेशा याद रखें
खाना जाने पर
हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है,
एक क्रिया है
जिसको हम कहते हे
"Digestion"
और दूसरी है "fermentation" फर्मेंटेशन का मतलब है
सड़ना...!
और
डायजेशन का मतलब हे
पचना.!

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी
तो खाना पचेगा,
खाना पचेगा
तो उससे रस बनेगा.!
जो रस बनेगा
तो उसी रस से
मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र और अस्थि बनेगा
और सबसे अंत मे मेद बनेगा.!

ये तभी होगा
जब खाना पचेगा.!

यह सब हमें चाहिए.
ये तो हुई खाना पचने की बात.
अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..? 

खाने के सड़ने पर
सबसे पहला जहर जो बनता है
वो हे यूरिक एसिड (uric acid)

कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है
की मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है,
मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है 

तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है
आप ये दवा खाओ,
वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो|
और एक दूसरा उदाहरण खाना 

जब खाना सड़ता है,
तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है
जिसको हम कहते हे
LDL (Low Density lipoprotine)
माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol)

जब आप
ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने
डॉक्टर के पास जाते हैं
तो वो आपको कहता है (HIGH BP)

हाई-बीपी है
आप पूछोगे...
कारण बताओ.?

तो वो कहेगा
कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है |

आप ज्यादा पूछोगे
की कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ?

तो वो आपको कहेगा
LDL बहुत है | 

इससे भी ज्यादा
खतरनाक एक  विष है
वो है.... VLDL
(Very Low Density Lipoprotine)

ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है।
अगर VLDL बहुत बढ़ गया
तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता|

खाना सड़ने पर
और जो जहर बनते है
उसमे एक ओर विष है
जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides.!

जब भी डॉक्टर
आपको कहे
की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ है
तो समझ लीजिए
की आपके शरीर मे
विष निर्माण हो रहा है |

तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे,
कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे,
कोई LDL -VLDL के नाम से कहे
समझ लीजिए
की ये विष हे
और ऐसे विष 103 है |

ये सभी विष
तब बनते है
जब खाना सड़ता है |

मतलब समझ लीजिए
किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए
की खाना पच नहीं रहा है ,

कोई कहता है
मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप...!
की आपका खाना पच नहीं रहा है |

कोई कहता है
मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है
तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे
की खाना पच नहीं रहा है | 

क्योंकि खाना पचने पर
इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता.!

खाना पचने पर
जो बनता है
वो है....
मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र, अस्थि.! 

और

खाना नहीं पचने पर बनता है....
यूरिक एसिड,
कोलेस्ट्रोल,
LDL-VLDL.!


और यही
आपके शरीर को
रोगों का घर बनाते है.!

पेट मे बनने वाला यही जहर
जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है !
तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता
और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा
जो खून मे आया है
इकट्ठा होता रहता है
और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है
जिसे आप
heart attack कहते हैं.!

तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है
की जो हम खा रहे हे
वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए
और खाना ठीक से पचना चाहिए
इसके लिए पेट मे
ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए|

क्योंकि
बिना आग के खाना पचता नहीं हे
और खाना पकता भी नहीं है 

महत्व की बात
खाने को खाना नहीं
खाने को पचाना है |

आपने क्या खाया कितना खाया
वो महत्व नहीं हे.!

खाना अच्छे से पचे
इसके लिए वाणभट्ट जी ने सूत्र दिया.!

"भोजनान्ते विषं वारी"

(मतलब
खाना खाने के तुरंत बाद
पानी पीना
जहर पीने के बराबर है)

इसलिए खाने के
तुरंत बाद पानी
कभी मत पिये..!

अब आपके मन मे सवाल आएगा
कितनी देर तक नहीं पीना.?

तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना ! 

अब आप कहेंगे
इसका
क्या calculation हैं.?

बात ऐसी है....!

जब हम खाना खाते हैं
तो जठराग्नि द्वारा
सब एक दूसरे मे
मिक्स होता है
और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं.!

पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक
1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है ! 

उसके बाद जठराग्नि कम हो जाती है.!

(बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है) 

पेस्ट बनने के बाद
शरीर मे रस बनने की
प्रक्रिया शुरू होती है !

तब हमारे शरीर को
पानी की जरूरत होती हैं।

तब आप जितना इच्छा हो
उतना पानी पिये.!

जो बहुत मेहनती लोग है
(खेत मे हल चलाने वाले,
रिक्शा खीचने वाले,
पत्थर तोड़ने वाले)

उनको 1 घंटे के बाद ही
रस बनने लगता है
उनको  घंटे बाद
पानी पीना चाहिए ! 

अब आप कहेंगे
खाना खाने के पहले
कितने मिनट तक पानी पी सकते हैं.?

तो खाना खाने के
45 मिनट पहले तक
आप पानी पी सकते हैं ! 

अब आप पूछेंगे
ये मिनट का calculation....?

बात ऐसी ही
जब हम पानी पीते हैं
तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है !

और अगर बच जाये
तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है.! 

तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है ! 

तो आप खाना खाने से
45 मिनट पहले ही
पाने पिये.! 

इसका जरूर पालण करे..! 

अधिक अधिक लोगो को बताएं.!
If you think that
It's educating people
Then you may spread.
It's all upto you.
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www.jayeshmodi.com
jayeshmodi@yahoo.com
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Tuesday, March 28, 2017

7 steps of forgiveness

Forgiveness is very desirable. For those who receive it, the burden of guilt is lifted. For those who give it, resentment and anger can be released, clearing the slate in a relationship and making room for peace.

Despite this, in everyday life forgiveness is not easy to achieve. Let's see if there is a way to offer genuine forgiveness, especially to those closest to you, because ironically, they are the ones you should forgive first and yet they are often the hardest to deal with.

Key Steps to Forgiveness
Here are the key steps involved:

Feel your emotions and face them directly.
Write down your reasons for not forgiving someone.
Ask yourself how motivated you are to offer forgiveness.
Let go of as much resentment and anger as you can, here and now.
Envision what the future would be like if you do forgive the other person.
Reconnect at a sincere positive level.
Find the place of forgiveness in your own awareness.
Each of these steps clears up a specific obstacle to forgiveness that may be inside you. Let's see how this works, step by step.

1. Feel Your Emotions and Face Them Directly
Resistance to forgiveness is fueled by emotions. You can rationalize why somebody else did something unforgivable, because deep down you feel angry, resentful, victimized, and hurt. Be honest with your grievance and go to the emotional level where it is rooted. Let the feeling be what it is. The purpose of this step is twofold, because if you confront your feelings, you also have the choice to release them.

Instead of jumping straight to forgiveness, take responsibility for your own emotions. If you can, let go of at least a small portion of your story of how things were supposed to go. Letting go is almost as hard as forgiving, I know. At least say to yourself, "Maybe if I let go of my interpretation of events and what is unfair, I don't have to be stuck with this feeling."

2. Write Down Your Reasons for Not Forgiving Someone
This is best done in the form of a letter addressed to the person you feel wronged you. List all your resentments and reasons in detail. Set the letter aside for a day and return to it to add anything else you forgot to say. When you are completely satisfied, put the letter away to consult later. Don't mail it. Its purpose was to get everything off your chest.

3. Ask Yourself How Motivated You Are to Offer Forgiveness
Before you started this process, you may have had little motivation to forgive the other person. There can be various reasons for this stubbornness, usually including righteous indignation. Now check to see if your resistance to forgiveness is ready to move. But don't set any expectation on yourself. If you are still mad as hell, if you feel devastated by hurt, or simply consider what was done to you unforgivable, it's better to know the truth than to pretend. No matter how weak or strong your motivation is, say to yourself, "All right, this is where I really am." Sometimes simply being honest with yourself begins to thaw the log jam.

4. Let Go of Resentment and Anger, Here and Now
You can only change what you are aware of, and by now you have gained self-awareness about the situation. Return to the letter that outlines all your grievances and reflect on each point one at a time. As you do, ask yourself, "Can I begin to let go of this resistance?" Don't force yourself to be magnanimous but stay with how you really feel.

Some items on your list will have begun to soften, and when you encounter this, say, "Maybe there is another interpretation of this event than the painful one I am holding on to." Release what you can and no more. At the same time, feel the burden of anger and resentment begin to lift. That's a positive feeling which will increase your motivation to keep with the forgiving process.

5. Envision What the Future Would Be Like If You Forgive the Other Person
Any place you feel your grievance beginning to melt away, pause and envision what it would feel like to be at peace with the other person. Sense the warmth in your heart. If it leads to tears or sobbing, that's okay—catharsis is a powerful emotion. If you can, feel the possibility of loving the other person, wishing them well, and setting them free—all of which is in your power.

6. Reconnect at a Sincere Positive Level
When you can't forgive someone, you usually isolate yourself from them, either physically or emotionally. Make an effort to repair this isolation and decide the appropriate level of reconnection. The safest course may be to write a note or send a card expressing your desire to reconnect and then leaving the next step to the other person. Be risk-averse here. You are treading on sensitive ground for both of you.

7. Find the Place of Forgiveness in Your Own Awareness
The final step of the forgiveness process is to shift your state of awareness. Forgiveness is a state of consciousness, not an action. Emotions get you closer to forgiveness yet they also block the way. If you remove the obstacles, it turns out that forgiveness is completely natural and generally far easier than you may have supposed.

More importantly, once you shift your awareness into forgiveness, there is a much smaller chance that you will relapse. The experience of being a forgiving person becomes part of your spiritual journey, something you deeply need and desire.
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પદાર્થચિત્ર ડોલ, તપેલી, ગ્લાસ દરેક વિદ્યાર્થીએ આ ચિત્ર દોરવું. ડાઉનલોડ

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